15 अगस्त 1947 को भारत ने ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी पाई। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि British सरकार ने अचानक भारत क्यों छोड़ दिया? इसके पीछे एक लंबी और संघर्षपूर्ण कहानी है। इसमें Mahatma Gandhi की भूमिका, Quit India Movement की ताकत, और स्वतंत्रता सेनानियों के अदम्य साहस की कहानियां शामिल हैं। British Raj क्यों खत्म हुआ, Gandhi Ji और उनके साथियों ने क्या भूमिका निभाई, और Quit India Movement के कारण क्या-क्या हुआ।
British हुकूमत और 1940 का दशक: भारत की आज़ादी की मांग
1940 के दशक में, World War II अपने चरम पर था। Hitler का जर्मनी यूरोप में तबाही मचा रहा था और Britain को हर तरफ से चुनौती मिल रही थी। इसी समय, भारत में भी आज़ादी की मांगें बढ़ती जा रही थीं। लेकिन British सरकार ने कई बार आज़ादी के छोटे-छोटे वादे करके भारतीय नेताओं को शांत करने की कोशिश की।
1. August Proposal (1940):
8 अगस्त 1940 को British Raj ने ‘August Proposal’ दिया, जिसमें भारतीयों को British-Indian government में कुछ अधिक प्रतिनिधित्व देने का वादा किया गया था। लेकिन इस प्रस्ताव को भारतीय नेताओं, खासकर Congress, ने अस्वीकार कर दिया। उनकी मांगें बहुत स्पष्ट थीं: पूर्ण स्वतंत्रता।
2. Cripps Mission (1942):
इसके बाद British सरकार ने मार्च 1942 में Cripps Mission भेजा। इसमें वादा किया गया था कि World War II के बाद भारत को स्वायत्तता मिलेगी, लेकिन यह Dominion Status तक सीमित था, यानी भारत British साम्राज्य का हिस्सा रहेगा। यह प्रस्ताव भी Congress ने ठुकरा दिया, क्योंकि उनका लक्ष्य केवल पूर्ण स्वतंत्रता था।
Quit India Movement: संघर्ष की शुरुआत
Gandhi Ji का ऐतिहासिक भाषण और ‘करो या मरो’ का मंत्र:
8 अगस्त 1942 को Mumbai के Gwalior Tank मैदान में All India Congress Committee के नेताओं की एक ऐतिहासिक बैठक हुई। इस बैठक में Mahatma Gandhi ने अपने प्रसिद्ध “करो या मरो” (Do or Die) के नारे के साथ Quit India Movement का आह्वान किया। उन्होंने जनता से कहा:
“हम British सरकार के बूट तले और नहीं रह सकते। हमें संपूर्ण स्वतंत्रता चाहिए। यह संघर्ष अंतिम होगा।”
Gandhi Ji के इस आह्वान के बाद हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और British हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा दिया।
British सरकार की प्रतिक्रिया: दमन की रणनीति
British सरकार को इस आंदोलन की भनक पहले से ही लग चुकी थी। उन्होंने इस आंदोलन को दबाने के लिए तीन-स्तरीय योजना बनाई:
- प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल: मीडिया पर नियंत्रण कर यह सुनिश्चित करना कि कोई भी अखबार इस आंदोलन या Gandhi Ji के भाषण की खबर न छापे।
- Congress नेताओं की गिरफ्तारी: Mahatma Gandhi, Pandit Nehru, Sardar Patel और अन्य शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया।
- जनता का दमन: जनता के विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया गया, और आंदोलन को देशद्रोही करार देकर इसे खत्म करने की कोशिश की गई।
9 अगस्त 1942 को Gandhi Ji और अन्य Congress नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें Pune के Aga Khan Palace में नजरबंद कर दिया गया। British सरकार ने इसे “घर में नजरबंदी” का नाम दिया ताकि जनता को भड़कने से रोका जा सके।
गुप्त रेडियो और जनता का संघर्ष
British सरकार के कड़े कदमों के बावजूद, यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ। जनता ने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपने-अपने तरीकों से संघर्ष जारी रखा।
Usha Mehta और Congress Radio:
Gandhi Ji का संदेश पूरे देश तक पहुंचाने के लिए 22 साल की युवा क्रांतिकारी Usha Mehta ने भूमिगत रेडियो स्टेशन शुरू किया। इसे Congress Radio के नाम से जाना गया। इस गुप्त रेडियो ने Gandhi Ji और अन्य नेताओं के संदेशों को घर-घर तक पहुंचाया, और British सरकार के प्रोपेगेंडा का मुकाबला किया।
Mahatma Gandhi की भूमिका: Ahimsa से लेकर व्यावहारिकता तक
Mahatma Gandhi Ahimsa के समर्थक थे। उन्होंने पहले भी 1922 के Non-Cooperation Movement और 1934 के Civil Disobedience Movement को हिंसा के कारण बंद कर दिया था। लेकिन Quit India Movement में Gandhi Ji का रुख थोड़ा बदल गया। उन्होंने महसूस किया कि जनता अब आज़ादी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है, और इस बार हिंसा को रोक पाना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा:
“मैं इंतजार करता रहा… लेकिन अब और इंतजार नहीं कर सकता। अगर दंगों के बावजूद आंदोलन जारी रहता है, तो इसे रोका नहीं जा सकता।”
Netaji Subhas Chandra Bose और Azad Hind Fauj का योगदान
जब Quit India Movement अपने चरम पर था, उस समय Netaji Subhas Chandra Bose जर्मनी में थे। उन्होंने Gandhi Ji के इस आंदोलन का समर्थन किया और इसे भारत का “अहिंसात्मक छापामार युद्ध” कहा।
Bose ने अपनी Azad Hind Fauj के जरिए British Raj को चुनौती दी। लेकिन इसके उलट कुछ भारतीय नेता British सरकार का समर्थन कर रहे थे, जैसे Vinayak Damodar Savarkar और Shyama Prasad Mukherjee।
जनता की भूमिका: हर कोई था स्वतंत्रता सेनानी
भारत छोड़ो आंदोलन सिर्फ नेताओं का आंदोलन नहीं था। आम जनता, छात्र, मजदूर, और गांव-गांव के लोग भी इस आंदोलन में शामिल हो गए।
- Bengal की Matangini Hazra ने 72 साल की उम्र में 6,000 लोगों के साथ पुलिस स्टेशन पर झंडा फहराने की कोशिश की और गोली लगने के बावजूद, वंदे मातरम के नारे लगाते हुए शहीद हो गईं।
- Aruna Asaf Ali ने भूमिगत रहते हुए कई विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और बाद में भारत की पहली महिला मेयर बनीं।
- Ram Manohar Lohia ने British सरकार के खिलाफ अपनी कलम और विचारों से आंदोलन को मजबूत किया।
British सरकार का पतन: क्यों छोड़ा भारत?
1945 में British Parliament में Labour Party की जीत हुई, और Prime Minister Clement Attlee ने खुलेआम घोषणा की कि अब भारत को स्वतंत्रता देने का समय आ गया है। World War II के बाद Britain की आर्थिक स्थिति कमजोर हो चुकी थी और भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बढ़ता जा रहा था।
इसके साथ ही, 1946 में INA Trials और Royal Indian Navy Mutiny ने भी British हुकूमत को झकझोर कर रख दिया। अंत में, 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया।
Mahatma Gandhi और Quit India Movement की ताकत
Mahatma Gandhi और उनके नेतृत्व में चले Quit India Movement ने British Raj की नींव हिला दी। इस आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि जब एक राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए एकजुट हो जाता है, तो सबसे बड़ी ताकतें भी उसे रोक नहीं सकतीं। यह आंदोलन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने स्वतंत्रता के संघर्ष को अपने अंतिम चरण में पहुंचाया।